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रात अकेली है: मर्डर मिस्ट्री में प्रेम को बेवजह थोपने की कोशिश

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बॉलीवुड वालों का मोह प्रेम से कभी भंग नहीं हो पाता. मर्डर मिस्ट्री भी दिखाएंगे तो उसमें प्रेम को बिना वजह दर्शकों पर थोपने की कोशिश करेंगे. नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी और राधिका आप्टे की फिल्म रात अकेली है इसी का उदाहरण है. फिल्म में शुरुआत में ही पता चल जाता है कि फिल्म का निर्देशक आपको क्या दिखाना चाहता है. मर्डर मिस्ट्री कहीं पीछे छूट जाती है, प्रेम पूरी फिल्म पर प्रगाढ़ होता नज़र आता है. हत्या की जांच भी इस तरह से दिखाई गई है, जो सिर्फ़ नवाज़ ही समझते हैं और एक नतीजे पर पहुंचते हैं कि हत्यारा कौन है. आख़िर में वो प्रवचन टाइप बता देते हैं कि कौन हत्यारा है. हालांकि फिल्म के कलाकारों की अभिनय के लिए तारीफ़ की जा सकती है, लेकिन कहानी कमज़ोर हो तो इस तरफ़ ध्यान भी नहीं जाता. मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि अपराध आधारित कोई फिल्म बनाने से पहले क्राइम पेट्रोल के पुराने एपिसोड होम वर्क के तौर पर देखने चाहिए. अभी तो क्राइम पेट्रोल के साइकिल की चेन भी उतर चुकी है और उसकी टीम पता नहीं क्यों बेवजह पैडल मारे जा रही है. क्राइम पेट्रोल में भी अपराध के साथ प्रेम दिखाते थे, लेकिन प्रेम कभी अपराध की जांच पर हावी नह...

के. आसिफ़ ने कहा था, जब कोई फिल्म बनेगी और लाजवाब होगी, तो लोग पूछेंगे- क्या मुग़ल-ए-आज़म बना रहे हो

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हिंदी की सबसे महंगी और सफल फिल्मों में से एक मुग़ल-ए-आज़म के 60 साल पूरे. पांच अगस्त 1960 को बड़े परदे पर हुई थी रिलीज़. मुंबई (भाषा): विद्रोही शहजादा सलीम और अनारकली के प्रेम पर आधारित काव्यात्मक क्लासिकल फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के प्रदर्शन के 60 साल पूरे हो गए. यह फिल्म हिंदी सिनेमा की सबसे चर्चित, महंगी और सफल फिल्मों में से एक है जिसके प्रति लोगों का आकर्षण अब भी बरकरार है. फिल्म इतिहासकार एसएमएम औसजा के अनुसार, एक सवाल के जवाब पर फिल्मकार के. आसिफ ने कहा था कि अगर वह सलीम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता दिलीप कुमार को साधारण जूते देंगे तो अभिनेता दिलीप कुमार की तरह चलेंगे. लेकिन अगर उन्हें महंगे जूते दिए गए जो वह सलीम की तरह चलेंगे. आसिफ से सवाल किया गया था कि वह फिल्म में जूतों पर भारी राशि क्यों खर्च कर रहे हैं. इस फिल्म के सेट, कपड़े सभी बेमिसाल हैं. आसिफ की उम्र उस समय 30 साल भी नहीं हुयी थी और उन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाई जिसे भव्य फिल्मों का पर्याय कहा जाता है. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ फिल्म में पृथ्वीराज कपूर ने बादशाह अकबर की भूमिका निभायी थी, जबकि दुर्गा खोटे ने जोधा बाई की, दिलीप कुमार ...

शी वेब सीरीज़: बनाने से पहले थोड़ा और विचार करना था

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जहां पुलिस इस बात के लिए बदनाम हो कि किसी से भी कोई भी जुर्म कुबूल करवा सकती है, वहां शी (SHE) जैसा वेब सीरीज़ बनाने से पहले थोड़ा और सोच विचार कर लेना चाहिए था. ने​टफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज़ इस वेब सी​रीज़ में नशे के व्यापार में शामिल एक अपराधी से जानकारी निकलवाने के लिए क्राइम ब्रांच एक लेडी सब इंस्पेक्टर को आगे कर देती है, क्योंकि वह सिर्फ उसी को जानकारी देने की शर्त रख देता है. और वो अपराधी जानकारी देने के नाम पर उस महिला सब इंस्पेक्टर को ही एक्सप्लॉएट करने वाली भद्दी- भद्दी बातें करता है. अपराधी के पकड़ में आने के बाद ऐसा प्रयोग और अपराधी को पुलिस द्वारा ऐसी सुविधा दिए जाने का उदाहरण शायद ही कहीं मिले. सोचता हूं कि जब ऐसे आइडिया पर वेब सीरीज़ बनाने की चर्चा होती होगी तो क्या होता होगा? शायद सभी उस आइडिया को लेकर बिना कुछ सोचे एक साथ बोल देते होंगे, एक्सीलेंट...

अलीगढ़ और नीरजा जैसी फिल्मों की जरूरत...

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नीरजा एक ऐसी विमान यात्रा की तरह है, जिसमें सीट बेल्ट बांधने के बाद उसे अनलॉक करने का मौका आपको नहीं मिलता. फिल्म कब शुरू होती है और कब खत्म इसका आपको एहसास नहीं हो पाता. आधी यात्रा के बाद जब इंटरवल होता है तो आप नहीं चाहते कि ऐसी कोई घटना घटे. नीरजा भनोत कहानी, अभिनय, निर्देशन, संवाद सब कुछ बेहद सधे हुए और संतुलित हैं. विमान हाइजैक होने के बाद नीरजा के माता-पिता के बीच होने वाला संवाद आपको भावुक करता है. बॉलीवुड को इस सुंदर फिल्म से नवाजने के लिए निर्देशक राम माधवानी का शुक्रिया. इस बार की फरवरी मेरे लिए इस मायने में खास है क्योंकि इस महीने दर्शकों को दो बायोपिक फिल्में मिल रही हैं. नीरजा रिलीज हो चुकी है और हंसल मेहता की फिल्म अलीगढ़ रिलीज को तैयार है. अलीगढ़, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरास की कहानी है, जिनके समलैंगिक होने की वजह से उन्हें कॉलेज से निलंबित कर दिया जाता है. बाद में जिनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है. श्रीनिवास रामचंद्र सिरास मुझे लगता है नीरजा और अलीगढ़ जैसी फिल्में आज बॉलीवुड की जरूरत हैं. हमारे देश के...

मधुबाला...

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फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' का एक डायलॉग, जिसे अनारकली की सुंदरता में कहा गया और हकीकत में जो उनका किरदार निभाने वाली मधुबाला पर एकदम सटीक बैठता है. आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि... हमें देखकर ये कौन छिप गया बहार? छिपा नहीं साहबे आलम छिपाया गया है क्यों? संगतराश का ये दावा है कि जब ये मुजस्सिमां बेनकाब होगा तो... बेखौफ होकर कहो, कभी-कभी दावे दिलचस्प भी हुआ करते हैं उसका ये दावा है कि इसे देखकर सिपाही अपनी तलवार शहंशाह अपना ताज और इंसान अपना दिल निकालकर उसके कदमों में रख देंगे संगतराश का दावा दिलचस्पी की हदों से आगे बढ़ गया है। हम उसके फन का गुरूर देखना चाहते हैं... मधुबाला : 14 फरवरी 1933-23 फरवरी 1969

अपने ही वज़ीर से मात खा गए बिजॉय नाम्बियार

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शतरंज के खेल में वज़ीर सूझ-बूझ से भरा सबसे ताकतवर मोहरा होता है. बिना किसी नियंत्रण के उसे असीमित ताकत मिली होती है. बाकी सारे मोहरे जैसे कि घोड़ा एक बार में ढाई खाने ही चल सकता है. हाथी सिर्फ सीधा-सीधा ही भाग सकता हैं और ऊंट केवल तिरछा दौड़ सकता है. लेकिन वज़ीर के साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं होती. एक समझदार वज़ीर अपनी शातिर चालों से बिसात पर अकेला होने के बावजूद पूरी बाज़ी पलटने का माद्दा रखता है. इसके ठीक उलट बिजॉय नाम्बियार अपनी फिल्म वज़ीर में अपने ही मोहरों से पिटते और मात खाते नज़र आते हैं. फिल्म दर फिल्म वज़ीर जैसी उनकी सूझ-बूझ दिवालियेपन का शिकार होती जा रही है. वज़ीर देखते हुए लगता ही नहीं कि ये वही बिजॉय हैं जिन्होंने 'शैतान' और 'डेविड' जैसी थ्रिलर फिल्में बॉलीवुड को दी हैं. इसकी एक वजह विधु विनोद चोपड़ा भी हो सकते हैं क्योंकि फिल्म की कहानी उन्हीं की है. एक अच्छी स्क्रिप्ट का कैसे कबाड़ा किया जाता है वज़ीर इसका बेहतरीन नमूना है. फिल्म शुरू के 15 मिनट ही थ्रिलर रह पाती है, उसके तुरंत बाद यह एक कम्पलीट फैमिली ड्रामा में तब्दील हो जाती है. फिल्म में शतरंज एक अहम किरदा...

फाड़ू आईडिया: 'मैन्स वर्ल्ड'

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क्या कभी ऐसा हो सकता है कि पुरुष बच्चे पैदा करें और उनके लड़का पैदा करने पर महिलाएं मुंह बिचकाने लगें..? मतलब प्रकृति का नियम ही बदल जाए. लड़कियां, लड़कों का पीछा करें और उनका घर से निकलना मुश्किल हो जाय. सिहरन पैदा कर देने वाली ये सोच यशराज फिल्म्स के बैनर तले जल्द रिलीज होने वाली फिल्म 'मैन्स वर्ल्ड' का आधार है. फिल्म में किरण नाम का एक शख्स फेमिनिज्म से फ्रस्ट्रेट होकर ईश्वर को चुनौती दे देता है कि बॉस वक़्त आ गया है, हमको उनकी जगह रखो और उन्हें हमारी जगह.. बस अगले दिन से उसकी दुनिया ही बदल जाती है. तो फिर है ना फाड़ू आईडिया... बोलो-बोलो; टेल-टेल... यहां देखें ट्रेलर https://goo.gl/DMQmZw