अपने ही वज़ीर से मात खा गए बिजॉय नाम्बियार
इसके ठीक उलट बिजॉय नाम्बियार अपनी फिल्म वज़ीर में अपने ही मोहरों से पिटते और मात खाते नज़र आते हैं. फिल्म दर फिल्म वज़ीर जैसी उनकी सूझ-बूझ दिवालियेपन का शिकार होती जा रही है. वज़ीर देखते हुए लगता ही नहीं कि ये वही बिजॉय हैं जिन्होंने 'शैतान' और 'डेविड' जैसी थ्रिलर फिल्में बॉलीवुड को दी हैं.
इसकी एक वजह विधु विनोद चोपड़ा भी हो सकते हैं क्योंकि फिल्म की कहानी उन्हीं की है. एक अच्छी स्क्रिप्ट का कैसे कबाड़ा किया जाता है वज़ीर इसका बेहतरीन नमूना है. फिल्म शुरू के 15 मिनट ही थ्रिलर रह पाती है, उसके तुरंत बाद यह एक कम्पलीट फैमिली ड्रामा में तब्दील हो जाती है.
फिल्म में शतरंज एक अहम किरदार है लेकिन बिजॉय ने बिसात पर चाल से ज्यादा मोहरों की डिज़ाइन पर ध्यान दिया है. पूरी फिल्म में किरदारों को सिर्फ चेक एंड मेट कहते सुनेंगे लेकिन उन्होंने कौन सी चाल चली ये दिखाने की कोशिश जरा भी नहीं की गयी है. बिजॉय जिस वज़ीर का राज आखिर में खोलते हैं, उसके बारे में दर्शक इंटरवल में ही समझ चुके होते है.
ये ऐश्वर्या रॉय की फिल्म जज़्बा की तरह ही शुद्ध बदले की कहानी है जिसमें एक ऐसी मौत का बदला लिया जाता है, जिसके बारे में ये प्रमाणिक ही नहीं हो पाता की वह हत्या है या फिर कुछ और. एक व्यक्ति की बेटी की मौत हो जाती है, लेकिन वह उसे हत्या मानता है. ये बात वह एक एटीएस अधिकारी को बताता है और वो अधिकारी बिना कोई जांच-पड़ताल किए पागल हाथी की तरह उस व्यक्ति को मौत के घाट उतार देता है जिस पर मारी गयी लड़की के पिता को शक होता है. ये शक इसलिए होता है क्योंकि उन्होंने उस व्यक्ति की आंखों में देखा हुआ होता है. बेटी की मौत के संबंध में इससे 'क्रेडिबल' जानकारी न तो उनके पास होती है और न ही निर्देशक और कहानीकार के पास होती है.
इस बेसिर-पैर की फिल्म का अफसोस है. बाकी ये फिल्म कमाई करेगी क्योंकि इतनी भारी भरकम स्टारकास्ट है कि दर्शकों के पास कोई ऑप्शन ही नहीं है. ये अफसोसनाक है लेकिन आप अपने ही वज़ीर से मात खा गए बिजॉय..!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें