के. आसिफ़ ने कहा था, जब कोई फिल्म बनेगी और लाजवाब होगी, तो लोग पूछेंगे- क्या मुग़ल-ए-आज़म बना रहे हो
हिंदी की सबसे महंगी और सफल फिल्मों में से एक मुग़ल-ए-आज़म के 60 साल पूरे. पांच अगस्त 1960 को बड़े परदे पर हुई थी रिलीज़.
मुंबई (भाषा): विद्रोही शहजादा सलीम और अनारकली के प्रेम पर आधारित काव्यात्मक क्लासिकल फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के प्रदर्शन के 60 साल पूरे हो गए. यह फिल्म हिंदी सिनेमा की सबसे चर्चित, महंगी और सफल फिल्मों में से एक है जिसके प्रति लोगों का आकर्षण अब भी बरकरार है.
फिल्म इतिहासकार एसएमएम औसजा के अनुसार, एक सवाल के जवाब पर फिल्मकार के. आसिफ ने कहा था कि अगर वह सलीम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता दिलीप कुमार को साधारण जूते देंगे तो अभिनेता दिलीप कुमार की तरह चलेंगे. लेकिन अगर उन्हें महंगे जूते दिए गए जो वह सलीम की तरह चलेंगे.
आसिफ से सवाल किया गया था कि वह फिल्म में जूतों पर भारी राशि क्यों खर्च कर रहे हैं. इस फिल्म के सेट, कपड़े सभी बेमिसाल हैं.
आसिफ की उम्र उस समय 30 साल भी नहीं हुयी थी और उन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाई जिसे भव्य फिल्मों का पर्याय कहा जाता है.
‘मुग़ल-ए-आज़म’ फिल्म में पृथ्वीराज कपूर ने बादशाह अकबर की भूमिका निभायी थी, जबकि दुर्गा खोटे ने जोधा बाई की, दिलीप कुमार ने सलीम की और मधुबाला ने अनारकली की भूमिका की.
यह फिल्म पांच अगस्त 1960 को पहली बार परदे पर आई थी. नौशाद के संगीत ने भी संगीत प्रेमियों को मोहने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ‘मोहे पनघट पे नंद लाल’ और ‘प्यार किया तो डरना क्या’ जैसे गानों को आज भी खूब पसंद किया जाता है. दर्शकों को यह फिल्म इतनी भायी कि वे इसे देखने बार बार सिनेमाघरों में जाने लगे.
कुछ कहानियां व और उद्धरण लोककथाओं का हिस्सा बन गए. वास्तव में, ‘मुग़ल-ए-आज़म’ का निर्माण कैसे हुआ, इस पर भी एक फिल्म बन सकती है.
सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने कहा कि इस फिल्म में कहानी को आगे बढ़ाने में संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा से कहा, ‘मैं के. आसिफ साहब से शायद दो-तीन बार मिली थी. हमारी ज्यादातर बातचीत नौशाद साहब के साथ होती थी. वह पहले निर्देशक से बातचीत करते थे, चीजों को समझते थे और फिर बेहतरीन संगीत की जिम्मेदारी लेते थे.’
वे कहती हैं, ‘आसिफ साहब गीतों से हमेशा खुश होते थे. शकील बदायुनी साहब ने इतनी सुंदर पंक्तियां लिखी हैं. हर गीत इतना मधुर है.’
‘प्यार किया तो डरना क्या’ की रिकॉर्डिंग को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘नौशाद साहब उसमें कुछ और चीजों को जोड़ना चाहते थे और हमारे पास तकनीक नहीं थी. उन्होंने मुझसे कहा कि ‘प्यार किया तो डरना क्या’ का नगमा गाएं और फिर गाने के दौरान धीरे-धीरे पीछे हटें ताकि मेरी आवाज़ थोड़ी दूर से आती लगे.’
अभिनेत्री तबस्सुम लगभग 14 वर्ष की थीं, जब उन्होंने फिल्म में अभिनय किया था.
उन्होंने पीटीआई/भाषा से कहा, ‘आसिफ साहब कहते थे, जब भी कोई फिल्म बनेगी और लाजवाब होगी, तो लोग पूछेंगे, ‘क्या तुम मुग़ल-ए-आज़म बना रहे हो.’
उन्होंने कहा, ‘आसिफ साहब पूर्णता में विश्वास करते थे. आमतौर पर निर्देशक एक कलाकार द्वारा दिए गए शॉट को ओके कह देते, लेकिन वह सही शॉट पाने के लिए अड़े रहते थे और अगर वह नहीं मिलता तो वह आगे नहीं बढ़ते. पूर्णता की आसिफ साहब की इच्छा के कारण फिल्म को बनने में बहुत समय लगा.’
बेस्टसेलर ‘दास्तान-ए-मुग़ल-ए-आज़म’ के लेखक लेखक राजकुमार केसवानी ने इसे लिखने के लिए 15 वर्षों तक शोध किया. वह याद करते हैं कि उस समय वह बच्चे ही थे और सड़कों पर लोग फिल्म के संवाद दोहराते थे. उन्होंने कहा कि एक दिन उनका परिवार उन्हें फिल्म देखने के लिए ले गया और उस दिन उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया.
उन्होंने कहा कि यह आसिफ के जादू, उनके फ़कीराना मिज़ाज से परिचित होने जैसा था.
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