अलीगढ़ और नीरजा जैसी फिल्मों की जरूरत...


नीरजा एक ऐसी विमान यात्रा की तरह है, जिसमें सीट बेल्ट बांधने के बाद उसे अनलॉक करने का मौका आपको नहीं मिलता. फिल्म कब शुरू होती है और कब खत्म इसका आपको एहसास नहीं हो पाता. आधी यात्रा के बाद जब इंटरवल होता है तो आप नहीं चाहते कि ऐसी कोई घटना घटे.

नीरजा भनोत
कहानी, अभिनय, निर्देशन, संवाद सब कुछ बेहद सधे हुए और संतुलित हैं. विमान हाइजैक होने के बाद नीरजा के माता-पिता के बीच होने वाला संवाद आपको भावुक करता है. बॉलीवुड को इस सुंदर फिल्म से नवाजने के लिए निर्देशक राम माधवानी का शुक्रिया.

इस बार की फरवरी मेरे लिए इस मायने में खास है क्योंकि इस महीने दर्शकों को दो बायोपिक फिल्में मिल रही हैं. नीरजा रिलीज हो चुकी है और हंसल मेहता की फिल्म अलीगढ़ रिलीज को तैयार है.


अलीगढ़, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरास की कहानी है, जिनके समलैंगिक होने की वजह से उन्हें कॉलेज से निलंबित कर दिया जाता है. बाद में जिनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है.

श्रीनिवास रामचंद्र सिरास
मुझे लगता है नीरजा और अलीगढ़ जैसी फिल्में आज बॉलीवुड की जरूरत हैं. हमारे देश के इतिहास को खंघालने की जरूरत है. इसमें नीरजा जैसे कई 'अनसंग हीरो' हैं, जिनकी कहानियां कहीं जानी बाकी हैं. प्रोफेसर सिरास जैसे हाशिये के लोगों को जानना जरूरी है. मुख्यधारा में उनकी बात होनी जरूरी है. वरना फरवरी में हमारे निर्देशक दोस्तों ने प्रेम नहीं लव आधारित फिल्मों की झड़ी लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.

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